नारद उवाच -सहस्त्रशीर्षापुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।सर्वव्यापी भुवः स्पर्शादध्यतिष्ठद् दशाङ्गुलम् ॥१॥ नारद बोले - जिस (देवता) के हजारों मस्तक हैं, जिसके हजारों नेत्र हैं, एवं जिसके हजारों पैर (पाद) हैं - ऐसा एक पुरुष (ईश्वर) हैं। वह भूमि को चारों तरफ से आवृत कर रहा है। तथा वह दश अङ्गुल रूप इस छोटी सी सृष्टि को व्याप्त कर इससे बाहर भी स्थित है ॥ १ ॥
देवा ऊचुः - लोकेश तारको दैत्यो वरेण तव दर्पितः । निरस्यास्मान् हठादस्मद्विषयान् स्वयमग्रहीत् ॥ ६८॥ रात्रिन्दिवं बाधतेऽस्मान् यत्र तत्र स्थिता वयम् । पलायिताश्च पश्यामः सर्वकाष्ठासु तारकम् ॥ ६९॥
त्वमोङ्कारोऽस्यङ्कुराय प्रसूतो विश्वस्यात्मानन्तभेदस्य पूर्वम् । सम्भूतस्यानन्तरं सत्त्वमूर्ते संहारेच्छोस्ते नमो रुद्रमूर्त्ते ॥ १॥ व्यक्तिं नीत्वा त्वं वपुः स्वं महिम्ना तस्मादण्डात् स्वाभिधानादचिन्त्यः । द्यावापृथिव्योरूर्ध्वखण्डावराभ्यां ह्यण्डादस्मात्त्वं विभागं करोषि ॥ २॥
प्रपद्ये देवमीशानं शाश्वतं ध्रुवमव्ययम्। । महादेवं महात्मानं सर्वस्य जगतः पतिम् ॥ १ ॥ आप हे देव ! आप सबके स्वामी हैं, आप शाश्वत (अविनाशी ) ध्रुव (स्थिर) एवं अव्यय ( अनश्वर) हैं। आप देवाधिदेव हैं, महान् आत्मा हैं, तथा समस्त जगत् के पति हैं, अतः आपको प्रणाम है ॥ १ ॥
नमो नमस्ते जगदेककर्त्रे नमो नमस्ते जगदेकपात्रे । नमो नमस्ते जगदेकहर्त्रे रजस्तमःसत्वगुणाय भूम्ने ॥ १॥ जगत् के एकमात्र कर्ता तुम्हें नमस्कार है, नमस्कार है, जगत् के एकमात्र पालक तुम्हें नमस्कार है, नमस्कार है । जगत् के एकमात्र हर्ता और सत्व, रज एवं तमो गुण के लिए भूमि स्वरूप तुमको नमस्कार है, नमस्कार है ॥ १ ॥
श्री गणेशाय नमः । एहि लसत्सितशतदलवासिनि भारति मामकमास्यम् । देहि च मे त्वदमरनिकरार्चितपादतले निजदास्यम् ॥ ध्रुवम् ॥ ॥ १॥ गदघहारिणि मधुरिपुजाये हिमगिरिजित्वरसिततमकाये ।
नमोऽस्त्वनन्ताय विशुद्धचेतसे स्वरूपरूपाय सहस्रबाहवे । सहस्ररश्मिप्रभवाय वेधसे विशालदेहाय विशुद्धकर्मणे ॥ १॥ विष्णु बोले— अनन्त नाम रूप वाले, विशुद्धचित्त, स्वरूप- स्थित, सहस्रबाहु, सूर्य के समान समर्थ, विशाल शरीर धारी एवं विशुद्ध (पवित्र) चेष्टाओं वाले आप ब्रह्माजी को मेरा प्रणाम है ॥ १ ॥
जिनका स्वरूप ध्यानियों के तमोगुणरूपी अन्धकार को नष्ट करता है, वाग्देवी सरस्वती जिनकी गृहिणी है, जिनके मुख से निःसृत वाणी ही चारों वेद हैं, जिनका यह समस्त चराचर विश्व कुटुम्ब (परिवार) है जिन्होंने अपने समग्र कार्य वेदों से प्रमाणित कर वेदों में प्रामाणिकता प्रदर्शित की, जिन्होंने केवल अपनी शक्ति के बल पर यथेच्छ सृष्टि रचना की, ऐसे अन्तरहित (अनन्त) देवाधिदेव भगवान् ब्रह्मा की हम स्तुति करते हैं ॥