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रुद्र (महादेव) कृत श्री ब्रह्मा कवचम् (पद्मपुराण अंतर्गत)

Rudra (Mahadev) krit Shri Brahma Kavacham (In Padma Purana)

नारायणादनन्तरं रुद्रो भक्त्या विरञ्चिनम् । तुष्टाव प्रणतो भूत्वा ब्रह्माणं कमलोद्भवम् ॥ १ ॥ भगवान् विष्णु द्वारा ब्रह्मा की स्तुति करने के बाद, भगवान् शङ्कर ने भी भक्तिपूर्वक आदिदेव पद्मयोनि ब्रह्मा की इस प्रकार स्तुति आरम्भ की ॥ १ ॥ रुद्र उवाच - नमः कमलपत्राक्ष नमस्ते पद्मजन्मने । नमः सुरासुरगुरो कारिणे परमात्मने॥२॥

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श्री ब्रह्म कवचं (महानिर्वाण तंत्र अंतर्गत)

Shri Brahma Kavach (From Mahanirvan Tantra)

विनियोग- ॐ अस्य श्री परब्रह्ममंत्र, सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, निर्गुण सर्वान्तर्यामी परम्ब्रह्मदेवता, चतुर्वर्गफल सिद्ध्यर्थे विनियोगः। ऋष्यादिन्यास-

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श्री गायत्री कवचम् (श्रीमद्वसिष्ठसंहितायां अंतर्गत)

Shri Gayatri Kavach (In Shrimad Vasishtha Sanhita)

याज्ञवल्क्य उवाच । स्वामिन् सर्वजगन्नाथ संशयोऽस्ति महान्मम । चतुःषष्टिकलानां च पातकानां च तद्वद ॥ १ ॥ मुच्यते केन पुण्येन ब्रह्मरूपं कथं भवेत् । देहश्च देवतारूपो मन्त्ररूपो विशेषतः । क्रमतः श्रोतुमिच्छामि कवचं विधिपूर्वकम् ॥ २ ॥

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श्री सरस्वती कवचम् (श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण अंतर्गत)

Shri Saraswati Kavach (In Brahmavaivarta Purana)

श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४ में मुनिवर भगवान नारायण ने मुनिवर नारदजी को बतलाया कि ‘विप्रेन्द्र! श्रीसरस्वती कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला है। जगत्स्त्रष्टा ब्रह्मा ने गन्धमादन पर्वत पर भृगु के आग्रह से इसे इन्हें बताया था। ब्रह्मोवाच -श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्। श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम्॥ उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वमे। रासेश्वरेण विभुना वै रासमण्डले॥ अतीव गोपनीयं च कल्पवृक्षसमं परम्।

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