ब्रह्माजी के प्रति भक्ति के भेद, रथयात्रा, ब्रह्मा के एक सौ आठ नाम तथा कार्तिक पूर्णिमा को उनके दर्शन का माहात्म्य महादेवजी कहते हैं- भक्ति के तीन भेद हैं- लौकिकी, वैदिकी और आध्यात्मिकी। गन्ध, माला, शीतल जल, घी, गुग्गुल, धूप, काला अगुरु, सुगन्धित पदार्थ, सुवर्ण, रत्न आदि आभूषण, विचित्र हार, न्यास, स्तोत्र, ऊँची-ऊँची पताका, नृत्य-वाद्य, गान, सब प्रकार की वस्तुओं के उपहार तथा भक्ष्य, भोज्य, अन्न, पान आदि सामग्रियों से मनुष्यों द्वारा जो ब्रह्माजी की पूजा की जाती है, लौकिकी भक्ति मानी गयी है।
जपहेतु माला— एतदनन्तर, आराधक को भगवान् देवाधिदेव ब्रह्माजी के अभीष्ट मन्त्र का न्यासादिपूर्वक रुद्राक्ष या लालचन्दन की माला पर स्वकार्यसिद्ध्यर्थ इच्छानुसार जप करना चाहिये । माला का पूजन — सर्वप्रथम, माला का अधोलिखित मन्त्रों से पूजन कर जप प्रारम्भ करना चाहिये-
शास्त्र का विधान है कि आराधक को अपने अभीष्ट देवता से वरप्राप्ति के लिये, सर्वप्रथम षोडशोपचार विधि से उस देवता की, शुद्धचित्त एवं पवित्र हृदय रखते हुए, सङ्कल्पपूर्वक पूजा करनी चाहिये । तदनन्तर मन्त्र का जप या स्तोत्र का पाठ, निश्चित सङ्ख्या में आरम्भ करना चाहिये। अतः यहाँ सर्वप्रथम देवाधिदेव ब्रह्मा जी का दैनिक पूजा -क्रम शास्त्रविधिपूर्वक लिखा जा रहा है.