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श्री ब्रह्मदेव स्तुतिः

Shri Brahmadev Stuti


मूर्तिः स्मर्तृतमोहरा, सहचरी वाचां परा देवता,
व्याहाराः श्रुतयः कुटुम्बकमिदं विश्वं चरस्थावरम् ।
यस्यैतच्छुतिमूलमूलकतया सन्दर्शितप्रक्रियम्,
स्वारम्भं भगवन्तमन्तरहितं ब्रह्माणमीडामहे ॥

जिनका स्वरूप ध्यानियों के तमोगुणरूपी अन्धकार को नष्ट करता है, वाग्देवी सरस्वती जिनकी गृहिणी है,
जिनके मुख से निःसृत वाणी ही चारों वेद हैं, जिनका यह समस्त चराचर विश्व कुटुम्ब (परिवार) है,
जिन्होंने अपने समग्र कार्य वेदों से प्रमाणित कर वेदों में प्रामाणिकता प्रदर्शित की,
जिन्होंने केवल अपनी शक्ति के बल पर यथेच्छ सृष्टि रचना की,
ऐसे अन्तरहित (अनन्त) देवाधिदेव भगवान् ब्रह्मा की हम स्तुति करते हैं ॥

We praise the infinite Lord Brahma, who destroys the darkness of ignorance in the form of the tamasic qualities of meditators, who is accompanied by the goddess of speech, Saraswati, whose divine voice is the source of the four Vedas, whose all-pervading universe is a family, who has demonstrated authenticity in the Vedas through his complete works, who has created the creation as desired by his own power alone.


From : Bramharchana Paddhati By Acharya Mrityunjay